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नशे की बढ़ती सामाजिक स्वीकृति

तरकश
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पंकज के. सिंह

समाज में नशे का आकर्षण और उसकी सामाजिक स्वीकार्यता विगत कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। संचार माध्यमों और ‘सेलिब्रिटी’ संस्कृति से मिल रहे बढ़ावे को सामाजिक रूप से खारिज करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। किशोर अधिकांशतः विद्यालयों में या बाहर अपने साथियों से नशाखोरी सीखते हैं। यह आवश्यक है कि स्कूलों में नशाखोरी के दुष्प्रभावों के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। विभिन्न स्तर पर कक्षाओं के स्कूली पाठ्यक्रम में नशे और इसके नुकसानों के विषय में विस्तार से जानकारी दी जानी चाहिए। इन विषयों को शोध एवं पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की जरूरत है।

एजुकेशन बोर्ड द्वारा इस क्षेत्र में प्रशिक्षित काउंसलर तैयार किए जाने चाहिए और ऐसे मामलों से निपटने के लिए संबंधित कानूनी एजेंसियों को विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारत विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि ये युवा ही राष्ट्र का भविष्य हैं। ऐसे में उनमें नशाखोरी के खिलाफ एक सतत अभियान चलाने की जरूरत है। जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ती नशाखोरी के कारण ऐसे लोगों को सहयोग, सहायता और मार्गदर्शन की जरूरत है।

लोगों को नशाखोरी से मुक्ति दिलाने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाएं सरकार का सहयोग कर रही हैं। ये नशाखोरी की रोकथाम और नियंत्रण करने के अलावा इसके हानिकारक प्रभावों के संबंध में लोगों को जागरूक करने का काम भी कर रही हैं। जिस मानव संसाधन के बल पर हम विश्व में अपना परचम फहराने के मंसूबे पाले हुए हैं, उसमें तेजी से जंग लगती जा रही है। उसकी धार कुंद हो रही है। उसकी आभा मलीन और कांति क्षीण हो रही है। नशे के काले कारोबारी उसकी नसों में ‘नीला जहर’ उड़ेल रहे हैं और हम या तो इससे अनभिज्ञ होने का आडम्बर कर रहे हैं या फिर बेबस होकर मूकदर्शक बने हुए हैं। धीरे-धीरे नशाखोरी युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है।

भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह एक गंभीर समस्या है। इसका परिणाम भयावह है। बीमारियों, हिंसा, अपराध, खून-खराबे आदि की बढ़ोतरी में योगदान करने वाली इस समस्या की अगर आर्थिक और सामाजिक कीमत आंकी जाए, तो वह हजारों करोड़ में है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव सहज ही देखा जा सकता है। नशाखोरी से जुड़ी समस्याओं के चलते हर साल आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। 2004 से 2013 के बीच में यह वृद्धि 149 प्रतिशत देखी गई।

‘सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय’ के आंकड़े बताते हैं कि देश में नशाखोरी की समस्या व्यापक रूप ले चुकी है। भारत में 34 लाख से अधिक नशाखोरी से पीड़ित लोग हैं। इस आंकड़े में शराब पीने वाले 1.1 करोड़ लोगों को शामिल नहीं किया गया है। आंकड़ों के अनुसार गत एक दशक में लगभग 30 हजार से अधिक लोग नशे की लत से जुड़ी समस्याओं के चलते आत्महत्या कर चुके हैं। वास्तव में सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें, सत्य यही है कि भारत में करोड़ों लोग नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं और इसका भयंकर दुष्परिणाम झेलने के लिए न केवल वह स्वयं वरन उनका समूचा परिवार अभिशप्त है।

देश में गांजा, भांग जैसे प्राकृतिक मादक पदार्थों का सेवन सदियों से होता आ रहा है। कुछ क्षेत्रों में तो परंपरागत रूप से लोगों को और विशेषतरू मेहमानों को इसका सेवन कराने की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है। हालांकि आर्थिक समृद्धि और संसाधन बढ़ने के साथ भारत में भी रासायनिक और संश्लेषित नशीली दवाओं के इस्तेमाल में वृद्धि तेजी से देखी जा रही है।

समाज में नशाखोरी विभिन्न रूपों में विद्यमान है और सभी स्तरों को प्रभावित कर रही है। नशाखोरी की बदलती और बढ़ती प्रवृति दुनिया के लिए गंभीर समस्या बनती जा रही है। अब लोग पारंपरिक नशीले पदार्थों के सेवन की जगह रासायनिक तत्वों के सेवन को तरजीह दे रहे हैं। नशे का तात्कालिक सुख प्राप्त करने वाली यह प्रवृत्ति ज्यादा घातक है। मारिजुआना और कोकीन जैसी गैरकानूनी नशीली दवाओं का सेवन तो अब रासायनिक दवाओं के मुकाबले बहुत ही कम रह गया है।

नशे का यह प्रकार प्राकृतिक नशीले पदार्थों के मुकाबले न केवल ज्यादा लत पैदा करने वाला है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक भी है। देश के पंजाब सहित कई राज्य नशाखोरी की इस गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। देश का अनमोल और युवा मानव संसाधन नशे के इस जहर का शिकार बन रहा है। जहर के काले कारोबारी मानवता का विनाश कर अपनी जेबें भरते चले जा रहे हैं। विश्व भर में नशाखोरी के दुष्प्रभाव के चलते अरबों रुपये स्वाहा हो जाते हैं। सभी देश इससे होने वाली आर्थिक और सामाजिक क्षति से जूझ रहे हैं। नशाखोरी से गंभीर स्वास्थ्य मसले खड़े हो रहे हैं। अपराध और हिंसा में वृद्धि हो रही है। नशाखोरी को स्थाई बीमारी की तरह देखा जाता है। लंबे समय तक नशे की आदत बनी रहने से दिमाग की सक्रियता और उसके काम करने की क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।

नशाखोरी का पहला लक्षण यह होता है कि नशे की गिरफ्त में आए किशोरों एवं युवाओं का व्यवहार एकाएक बदल जाता है। नशे के शिकार युवाओं पर हमेशा एक खुमारी छाई रहती है। नशे का शिकार युवा बेतरतीब, अव्यवस्थित और अनुशासनहीन जीवनशैली का शिकार तेजी से होने लगता है। उसकी संगति और मित्र मंडली बदल जाती है। उसकी मित्र मंडली में अचानक ही नए-नए दोस्त जुड़ने लगते हैं। नशे के दुष्प्रभाव से शरीर शिथिल पड़ने लगता है तथा पढ़ाई में एकाग्रता कम होने लगती है। इसके फलस्वरूप स्कूली परीक्षाओं में प्रदर्शन गिरने लगता है। बिना कारण बताए घर से गायब रहने की प्रवृति बढ़ने लगती है। कानून का उल्लंघन करने, झूठ बोलने और चोरी जैसे कामों की ओर वह उन्मुख होने लगता है। कुल मिलाकर नशाखोरी से शुरु हुई यह घातक लत व्यक्ति को अपराध और आत्महत्या जैसे पतित मार्ग की ओर उन्मुख करती है।

शराब, सिगरेट, ड्रग्स, गुटखा या खैनी का सेवन थोड़ी मात्रा में भी शरीर को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन जब यह लत बन जाए, तो स्थिति बेकाबू होने लगती है। जिस नशे की लत है, वह जब तक न मिले, पीड़ित व्यक्ति बेचैन और असामान्य बना रहता है। जब वह नशा उसे मिल जाता है, तो वह कुछ समय के लिए सामान्य महसूस करने लगता है। निरंतर नशे का आदी व्यक्ति अंदर से बेहद कमजोर और बीमार और खोखला होता जाता है। घबराहट, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, मूड अचानक बदलना, तनाव, मानसिक थकावट, फैसला लेने में दिक्कत, कमजोर स्मरणशक्ति, चीजों को लेकर भ्रमित रहना, नींद न आना, सिर में तेज दर्द होना, शरीर में ऐंठन-मरोड़, भूख में कमी, धड़कन का बढ़ना, ज्यादा पसीना आना, उल्टी-दस्त होना आदि नशे की लत के लक्षण हैं।

अगर परिवार में कोई नशा करता है, तो परिवार के दूसरे सदस्यों खासकर बच्चों में भी नशे की लत की आशंका होती है। अभिभावकों को लत है, तो बच्चों में भी जन्मनः ऐसे जीन्स होते हैं, जो उन्हें भी उस नशे की तरफ खींचते हैं। प्रयोग और सेक्स की इच्छा बढ़ाने की कोशिश में भी लोग नशे की तरफ जाते हैं। घरेलू तनाव और निजी जीवन में क्लेश, कलह के कारण भी कई व्यक्ति नशे के सहारे राहत ढूंढने लगते हैं। क्षणिक राहत की तलाश में शुरू हुई नशे की यह खतरनाक यात्रा व्यक्ति को तबाही की भयंकर खाई में ले जाकर धकेल देती है।

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