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हिंद महासागर क्षेत्र में बढता़ संघर्ष

तरकश
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सेशेल्स हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित एक छोटा सा द्वीप है। भारत के लिए सेशेल्स का महत्व इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वहां चीन अपना दखल निरंतर बढ़ाता जा रहा है। वर्तमान समय में चीन द्वारा सेशेल्स में डेढ़ दर्जन के लगभग बड़ी सरकारी वित्तीय परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। चीन ने सेशेल्स को आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की है। पिछले कुछ वर्षों से चीनी अधिकारी और राजनयिक निरंतर सेशेल्स की यात्रा करते रहे हैं और उन्होंने सेशेल्स को हरसंभव चीनी सहयोग का आश्वासन दिया है। चीन की ओर से सेशेल्स को सैन्य सहयोग भी दिया जा रहा है और उसे अनेक रक्षा उपकरण भी चीन द्वारा दिए गए हैं। सेशेल्स 115 छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर बना है और इसकी आबादी मात्र एक लाख के लगभग है।


सेशेल्स में करीब 10 हजार भारतीय नागरिक रहते हैं। चीन की बढ़त को कम करने के लिए भारत ने भी सेशेल्स की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाया है। भारत द्वारा सेशेल्स को तटीय निगरानी रडार जैसे अत्याधुनिक तकनीकी रक्षा एवं निगरानी उपकरण देने का निर्णय लिया गया है। चीन के नौसैनिक हितों के दृष्टिगत सेशेल्स बहुत महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि वह इसी क्षेत्र में मॉरीशस के पास दिएगोगार्शिया में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे के समक्ष अपना प्रतिरोधी केंद्र निर्मित करना चाहता है। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर भारत देश के नाम पर ही बना है। यह विश्व का इकलौता महासागर है, जो किसी देश के नाम पर है। यह हमारी कमजोरी रही है कि हजारों वर्षों की परतंत्रता काल के दौरान भारतीय शक्ति और सामर्थ्य इस क्षेत्र में क्षीण होती चली गई और चीन ने इस क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों के दौरान अपना दबदबा बहुत अधिक बढ़ा लिया है। वास्तव में भारत के सामने यह चुनौती है कि वह किस प्रकार हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी शक्ति और सामर्थ्य को स्थापित करे। विश्व का 80 प्रतिशत से अधिक तेल परिवहन हिंद महासागर से ही होता है।

विश्व का सर्वाधिक सामरिक व सशस्त्र संघर्ष वाला क्षेत्र हिंद महासागर ही है। चीन और अमेरिका दोनों ने ही हिंद महासागर के सामरिक महत्व को भली-भांति समझ लिया है और यही कारण है कि यह दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सक्रियता और दबाव निरंतर बढ़ाते जा रहे हैं। अमेरिका का युद्धक जहाजी बेड़ा बहरीन में लंगर डाले हुए है और दिएगोगार्शिया द्वीप पर स्थित अमेरिकी नौसेना और वायु सेना का आधार केंद्र आस-पास के समस्त क्षेत्रों पर निगरानी रखने के लिए बहुत उपयुक्त स्थान सिद्ध हो रहा है। स्पष्ट है कि भारत के लिए सेशेल्स एक अत्यंत महत्वपूर्ण देश है। सेशेल्स में भारत की निष्क्रियता का दौर अब समाप्त होना चाहिए। यह भारत के लिए दीर्घकालिक सैन्य एवं कूटनीतिक महत्व का क्षेत्र सिद्ध हो सकता है।

मॉरीशस के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंध रहे हैं। मॉरीशस हमेशा से ही भारत के नजदीक रहा है। यद्यपि विगत कुछ वर्षों में इस देश की तरफ भारत उतना राजनयिक ध्यान नहीं दे सका है, जितना अपेक्षित था। मॉरीशस को भारत का ही छोटा रूप माना जाता है। यहां 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही भारत से श्रमिकों का आगमन प्रारंभ हुआ था और कई पीढ़ियां बीतने के बाद मॉरीशस में आज हर तरफ भारतीयता के दर्शन स्पष्ट रूप से हो जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटते समय महात्मा गांधी भी 1901 में मॉरीशस में रुके थे। उनके प्रति अपने श्रद्धाभाव को व्यक्त करते हुए मॉरीशस प्रत्येक 12 मार्च को राष्ट्रीय दिवस मनाता है। मॉरीशस के साथ भारत का रिश्ता कितना आत्मीयताभरा रहा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि  भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में गैर सार्क देशों से आमंत्रित एकमात्र राष्ट्राध्यक्ष मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन चंद्र रामगुलाम ही थे। भारत आज भी मॉरीशस का सबसे बड़ा व्यापारिक और वाणिज्यिक सहयोगी है। निश्चित रूप से भारत के लिए मॉरीशस के साथ अपने संबंधों की प्रगाढ़ता को बनाए रखना बहुत अधिक आवश्यक है, क्योंकि मॉरीशस सदैव से ही भारत का एक विश्वसनीय मित्र रहा है।


मॉरिशस यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि लाने की दिशा में भारत सदैव प्रयत्नशील रहा है, परंतु विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनके व्यापक हित इस क्षेत्र में दाव पर लगे हुए हैं। स्पष्ट है कि चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री का इशारा इसी तरफ था। भारत वैसे भी पारंपरिक रूप से ही प्रभुत्व की राजनीति से दूर रहा है। भारत ने कभी भी वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व बढ़ाने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किए हैं। इसी का लाभ उठाकर संपूर्ण एशिया क्षेत्र में चीन ने अपनी शक्ति को बहुत अधिक बढ़ा लिया है।


भारत और मॉरीशस ‘दोहरी कराधान बचाव संधि’ (डीटीएटी) के दुरुपयोग से निपटने के लिए एक साझा रणनीति पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गए हैं। भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी मॉरीशस यात्रा के दौरान मॉरीशस को यह आश्वस्त किया है कि भारत ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगा, जिससे मॉरीशस या उसके रणनीतिक भागीदारों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान हो। भारत को यह शंका रही है कि कर चोरी तथा कालेधन को भारत से लाने और भारत तक पहुंचाने में मॉरीशस के मार्ग का प्रयोग होता रहा है। भारत इस प्रकार के किसी भी प्रयास को रोकना चाहता है। मॉरीशस, भारत में काफी बड़ा निवेश करता रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में मॉरीशस से लगभग 4.8 अरब डॉलर का निवेश भारत में किया गया था। भारत के लिए मॉरीशस एक स्वाभाविक सहयोगी रहा है। यह आवश्यक है कि भारत, मॉरीशस के साथ अपने आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक संबंधों को आगे बढ़ाता रहे।

लेखक: पंकज सिंह


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